जल के सहयोगी देव हैं - पर्जन्य, आपः, आपवत्स, वरुण, दिति, अ¬िदति, इंद्र, सोम, भल्लाट इत्यादि। इनके पदों पर निर्मित जलाशय शुभ फलदायक होता है। इन पदों का निर्धारण 81 या 64 पदानुसार करना चाहिए। टोडरमल ने अपने वास्तु सौख्यम नामक ग्रंथ में पूर्व में जल स्थान के निर्माण को पुत्रहानिकारक बताया है।
उनके अनुसार पूर्व में इंद्र के पद पर जल का स्थान श्रेयस्कर है। पूर्व आग्नेय के मध्य में शुभ नहीं है। अग्नि कोण में यदि जल की स्थापना की जाए तो वह अग्नि भय को देने वाला होगा। दक्षिण में यदि जलाशय हो तो शत्रु भय कारक होता है। र्नैत्य में स्त्री विवाद को उत्पन्न करता है। पश्चिम में स्त्रियों में क्रूरता बढ़ाता है। वायव्य में जलाशय गृहस्वामी को निर्धन बनाता है। उत्तर में जलाशय हो तो धन वृद्धिकारक तथा ईशान में हो तो संतानवृद्धि कारक होता है।
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