top of page

कष्ट निवारक शनि अष्टक

  • astrotalkindelhi
  • Mar 15, 2024
  • 1 min read



शनि अष्टक एक प्रबल संस्कृत स्तोत्र है जिसकी रचना प्रसिद्ध हिंदू दार्शनिक और संत आदि शंकराचार्य ने की थी। यह स्तोत्र शनिदेव को समर्पित है, जिन्हें हिंदू ज्योतिष में कर्म और दुखों का स्वामी माना जाता है।

आठ छंदों से मिलकर बने इस अष्टक को "कष्ट निवारक शनि अष्टक" के नाम से जाना जाता है। इसका पाठ शनिदेव के प्रकोप से बचाव और उनके कारण उत्पन्न दुःखों और बाधाओं को दूर करने के लिए किया जाता है।

शनि अष्टक का पहला छंद शनिदेव का आह्वान करता है, उन्हें सूर्यदेव और छाया का पुत्र बताते हुए उनके वर्षा वाले बादल जैसे काले रंग की स्तुति करता है। यह छंद सभी दुःखों और बाधाओं से मुक्ति के लिए उनकी कृपा मांगता है।

अन्य छंदों में शनिदेव की कठोर तपस्या, उनकी नवग्रहों पर शासन करने वाली स्थिति, और उनकी दण्ड देने की शक्ति का वर्णन किया गया है। भक्त शनिदेव के चरणों में समर्पित होकर उनकी कृपा और क्षमा मांगता है।

गहरी श्रद्धा और भक्ति से शनि अष्टक का पाठ करने से शनिदेव की कटु दृष्टि के प्रभावों को शांत करने और जन्म कुंडली में शनि के गोचर के कारण उत्पन्न होने वाले नकारात्मक प्रभावों को दूर करने में सहायता मिलती है। कई हिंदू शनिवार के दिन और शनि के दशा काल के दौरान इस स्तोत्र का पाठ करते हैं ताकि बाधाएं और कठिनाइयां कम हो सकें। Read More

 
 
 

Comments


bottom of page